Life Reflecter Ravi Ajmeriya

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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

रिश्ते

कितने अजीब रिश्ते है यहाँ पर 
कभी कभी अपने थे कभी कभी बेगाने है 
रिश्तों का बोझ लेकर बच्चा पैदा होता है 
नवजीवन के रूप के रूप में रिश्तों की डोर होता है 
इससे ही तो लोगों को अपनी जिम्मेदारी का बोध होता है 
सच कहु तो इंसान के रूप में रिश्ता ही तो पैदा होता है 
रिश्तों की चादर ओड़कर ही इंसान सोता है 

जो इंसान रिश्तों को अलग रखकर अपना घर बनता है 
उसे इंसान की संज्ञा से ही वंचित  कर दिया जाता है 
रिश्ते के पैदा ही  एक नयी लहर दौड़ जाती है 
कोई माँ तो कोई पिता हो जाता है 
कोई मामा कोई  चाचा हो जाता है 
कोई पति पत्नी तो कोई 
गर्लफ्रेंड - बॉयफ्रेंड हो जाता है 

कभी भावनाओ के तले रिश्ते बनाये जाते है 
तो कभी तले रिश्ते निभाए जाते है 
कभी कभी रिश्ते निभाना मजबूरी लगता है 
तो कभी कभी बंधन और रिश्तो में फर्क  मुश्किल लगता है 
कभी कभी स्वार्थ का दूसरा रूप  दिखाई पड़ते है रिश्ते 
तो कभी जीने का सहारा लगते है रिश्ते
तो कभी रिश्तों की आड़ में ही कलंकित होते है रिश्ते 

कभी मजबूत तो कभी कमजोर पड़ जाते है रिश्ते
तो कभी स्वार्थ ,लालच ,भय रुपी शत्रुओं से भी जूझते है रिश्ते
कभी सहर्ष प्रेम, आत्मीयता से मजबूत होते है रिश्ते
पर रिश्ते तो रिश्ते है इन्हें कोन बदल पाया है
क्यूंकि प्रकर्ति का नियम है रिश्ते
समय का बोध है रिश्ते

कितने अजीब रिश्ते है यहाँ पर
कभी कभी अपने तो कभी कभी कभी बेगाने है !

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